पंडित रघुनंदन समाधिया मां भगवती टाइम्स
देवास। स्वार्थ से परमार्थ की यात्रा पूरी नहीं होती। गुरू की सम्पत्ति भौतिक और लोकिक नहीं होती, गुरू की संपत्ति उसका शिष्य है। शिष्य का महान होना ही गुरू की कीर्ति है। राम कथा मांगना नहीं सिखाती, थोडी निष्ठा और श्रद्धा चाहिये। महापुरूषों के हृदय कोष आपको जीवन जीने का उपाय बताते हैं, जिसके हृदय में करूणा के भाव है वो ही राम को समझ सकता है। कमल की तरह जीवन को जीता है वो पवित्र है। सनातन में सन्यास का अर्थ विराट है, भगवा कपडे पहनकर, वन में जाना सन्यास नहीं है। सन्यास पूर्ण रूप से जीवन को जीने की कला है। जीवन के सभी सौंदर्य को आत्मसाद करना सन्यास है। अनाधिकृत को स्वीकार नहीं करें, अनाधिकृत वस्तु हो या विचार वो प्रकृति के पास पहुंच जाती है जिसका परिणाम गलत ही होता है।
हम स्वाभविकता जीवन जीयें, स्वाभाविकता को स्वीकार करें, चमत्कार का नहीं। यह आध्यात्मिक सत्य कथन जवाहर नगर में संस्था बजरंग द्वारा राष्ट्र को समर्पित श्री राम कथा में रामकथा मर्मज्ञ सुलभ शांतु जी ने व्यक्त करते हुए कहे। आपने राज्याभिषेक का भावपूर्ण वर्णन करते हुए कहा कि राम धर्म के स्वरूप है। इसलिए राम ने रघुकुल की मर्यादा का मान रखकर पिता के वचनों का पालन कर 14 वर्ष वनागमन को प्रसन्नतापूर्र्वक स्वीकार किया। आपने बताया कि कैकई अर्थात काम, मंथरा अर्थात मोह, जिस काम में मोह प्रभावशाली हो जाता है वहां सुमती नहीं रहती, विवेक शून्य हो जाता है, प्रसन्नता की बात सुनकर किसी को दुख होता है तो वह मंथरा है।
दुुख सभी को आता है, दुख में जो प्रसन्न रहता है, दुख उसे त्याग देता है और जो दुखों का बखान करता है दुख उसके साथ सदा रहता है। कथा में राष्ट्र गीतों के गायक देवेन्द्र पंडित ने भारत का रहने वाला हूँ गीत तथा राम चौपाई गाकर श्रोताओंं को मंत्र मुग्ध कर दिया।
व्यासपीठ की पूजा संयोजक गणेश पटेल, हेमंत बिसोरे, गुरप्रित ईशर, शंकर भोले, मेहरबानसिंह ने की। आरती में विश्वकीर्तिमान साहित्यकार राजकुमार ंचदन, वरिष्ठ पत्रकार ओम नवगोत्री, हरिनारायण विजयवर्गीय, आद्यगोड समाज अध्यक्ष दिनेश तिवारी एवं पदाधिकारी, सर्व ब्राह्मण महिला सभा की प्रतिभा शर्मा, विनिता व्यास, रेणु शर्मा, उज्जैन से संजय उपाध्याय, गजेन्द्र शर्मा आदि ने आरती की। संचालन चेतन उपाध्याय ने किया।
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