पंडित रघुनंदन समाधिया प्रधान संपादक मां भगवती टाइम्स
राजकुमार जैन प्रधान संपादक
देवास। यदि आप जंगल से प्यार करते है, प्राकृतिक जंगल का रोमांच पसंद करते है और जंगल जीवन का जीवंत अनुभव लेना चाहते है तो एक बार कान्हा जरूर जायें। दुनिया के सबसे खूबसूरत प्राकृतिक जंगलों मे इस सदीयों पुराने कान्हा के वनक्षेत्र का भी शुमार होता है। घोड़े के पैरों के आकार का सतपुड़ा की 450 से 900 मीटर तक ऊंची पहाड़ियों से घिरा हुआ यह वन क्षेत्र मध्यप्रदेश के दो जिलों मंडला और बालाघाट में फैला हुआ है। कान्हा शब्द का उद्भव स्थानीय भाषा के कनहार शब्द से हुआ है जिसका मतलब चिकनी मिट्टी होता है। कान्हा मूल रूप से गोंडवाना साम्राज्य (14 से 18वीं सदी तक) का एक हिस्सा था, गौंड मध्य भारत की एक स्थानीय जनजाति है जो सतपुड़ा मैकल जंगलों के निवासी हैं। यह जनजाति खेती और वन उपज पर निर्वाह करती है। मानव आबादी बढ़ने के साथ ही वन संपदा का दोहन और वन्य जीवों का शिकार बढ़ने लगा जिससे जंगल का स्वरूप और प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने लगा था।
ब्रिटिश शासन के दौरान हॉलन और बंजार नदी घाटियों को महत्वपूर्ण वन क्षेत्रों के रूप में पहचाना गया और 1862 में वन्य संरक्षण कानून के तहत वृक्षों की कटाई पर रोक लगाई गयी जिसके परिणाम 1871 तक यहां की स्थिति में व्यापक बदलाव के रूप मे सामने आये। 1969 में सरकार ने इस क्षेत्र के आस-पास बसे गांवों को पुर्नस्थापित करने की कवायद पर जोर दिया। इस कवायद के फलस्वरूप जंगल को अपने प्राकृतिक स्वरूप मे लौटने मे मदद मिली और वन्य वनस्पति और जीवों की कई प्रजातियों को विलुप्त होने से बचा लिया गया। 1933 में इसे अभयारण्य का दर्जा दिया गया और 1 जून 1955 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर दिया गया। 1973 में इसे कान्हा टाइगर रिजर्व का नाम दिया गया।
अभयारण्य का अधिकांश हिस्सा समुद्रतल से 600 मीटर की ऊंचाई पर मैदानी इलाकों में स्थित है। उद्यान के अंदर फैला हुआ वन प्रमुखता से उष्ण कटिबंधीय नम पर्णपाती प्रकार का है। पठार का ढाल मोटे तौर पर बीजा, हल्दू, धौरा वृक्षों से आच्छादित है। इनके अलावा उद्यान में साल, सज, तेंदु, अर्जुन, आंवला, पलास, सलाई, आम, जमुना, चिरौंजी, महुआ, लेंडिया, पलास, धवा और बांस जैसे बहुत से वृक्ष पाये जाते हैं। अन्य महत्वपूर्ण पेड़ जैसे लेगर स्ट्रोमिया, बोसवेलिया, पटरोकार्पस और मधुका कान्हा उद्यान की फूलों की समृद्धि को बढ़ाते हैं। यहाँ के वन्य जीवों में चीतल, सांभर, बारहसिंगा, काले हिरण, चित्तीदार हिरण, काला जंगली बकरा, नील गाय, गौर, भालू, जंगली सूअर, ताड़ गिलहरी, जंगली कुत्तें, सियार, लंगूर, खरगोश और धारीदार लकड़बग्घें शामिल हैं। इन जंगलों में पक्षियों की 300 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें मवेशी इग्रेट, इंडियन रोलर, मालाबार पाइड हॉर्नबिल, गिद्ध, गरुड़, बाज़, पेड़ पाई, मुर्गी, कोयल, रेड जंगल फॉवल, मोर, फ्लाईकैचर, लैपविंग, पैराकेट्स, ब्लैक आइबिस, पोंड हेरोन्स, क्रेस्टेड सर्पेंट ईगल, लिटिल ग्रीब्स, सफेद-भूरे रंग की फंतासी, पैराडाइज फ्लाईकैचर, लेसर एडजुटेंट, ड्रोंगोस, कॉमन टील, व्हाइट-आइड बज़र्ड, लेसर व्हिसलिंग टील, हरे कबूतर, स्टेपी ईगल, मैना, मिनिवेट्स और कठफोड़वा आदि शामिल है। जल पक्षियों जैसे सारस, बगुले, किंग फिशर आदि को उद्यान में कई नाले और पूलों के पास देखा जा सकता है। उद्यान में अजगर, कोबरा, करैत और अन्य प्रकार के सांपों सहित सरीसृप भी पाए जाते हैं।
अभयारण्य अक्तूबर से जून तक पर्यटकों के लिए खुला रहता है। नजदीकी रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा जबलपुर है, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से भी यहा पहुंचा जा सकता है। जबलपुर – मंडला – बम्हनी – जहरमऊ – खटिया – किसली की 155 कि.मी. की दूरी लगभग 3 से 4 घंटों मे सम्पन्न होती है। रास्ते मे मंडला के पास प्रकाश और राजपूत नाम के प्रसिद्ध ढाबे पड़ते है जहां शुद्ध घी के पराठों का लुत्फ उठाया जा सकता है। कान्हा मे ठहरने के लिए बजट अनुसार सभी प्रकार के स्थान उपलब्ध है जो ऑनलाईन बुक किए जा सकते हैं। मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा संचालित जंगल रिसोर्ट सरही, बघीरा जंगल रिसोर्ट मोचा और सफारी लॉज मुक्की यहा आने वाले पर्यटकों के बीच खासे लोकप्रिय है। जंगल सफारी वन विभाग की वेब साईट पर आनलाईन बूक की जा सकती है। यहाँ दो प्रकार की सफारी होती है सुबह और शाम।
अपनी इस यात्रा मे हमने सुबह वाली सफारी बुक की थी। अल सुबह 5:30 बजे जिप्सी रिसोर्ट के दरवाजे पर आ पहुंची थी। रिसोर्ट द्वारा नाश्ता पैक कर हमारे हवाले कर दिया गया। जिप्सी मे बैठने से जंगल मिलन की हमारी यात्रा की शुरुआत हुई। रिसोर्ट से लगभग 6 किलोमीटर दूर खटिया गेट के पास सफारी पर जाने वाली सारी जिप्सीया अनुशासित ढंग से कतारबद्ध खड़ी होकर गेट खुलने का इंतजार करती है। इंतजार करते हुए आसपास मिल रहे मजेदार गर्म पोहा और चाय आदि का आनंद उठाया जा सकता है। 6:15 पर गेट खुलते ही एक के बाद एक, बिना किसी आपाधापी के गाड़ियां जंगल में प्रवेश करती है। वाहन चालक और गाइड अपने काम के लिए प्रशिक्षित और सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं। तेज आंखों वाले ये गाईड घने जंगलों मे छुपे प्राणीयों को खोज निकालने के साथ ही उनके पगमार्क पहचानने मे भी निपुण होते है।
प्रवेश द्वार से अंदर घुसते ही आपका सामना होता है 2200 वर्ग किलोमीटर में फैले साल के घने जंगलों के विराट स्वरूप से जो वृक्षों, वनस्पतियों और वन्य जीवों का प्राकृतिक निवास स्थान है। जहां तक नजर पड़े वहाँ तक चारों ओर फैले विशाल आसमान छूते साल के पेड़ नजर आते हैं। यह अदभुत तिलस्मी जंगल पहली नजर के प्यार की तरह आपको सम्मोहित कर देता है और आप अपनी सुधबुध खोकर इस सुंदर जंगल के आगोश में गहरे उतारने को आतुर हो उठते है। जैसे जैसे आप आगे बढ़ते जाते हैं सम्मोहन और गहराता जाता है। रास्ते मे दिखाई पड़ने वाली दीमक द्वारा अपनी राल और मिट्टी के मिश्रण से निर्मित विशाल रहवासी बांबीया वास्तुकला का एक अदभुत नमूना प्रस्तुत करती हैं। छोटे छोटे तालाब, निर्बाध बहती पानी की धाराएं, झर झर बहते झरने, हाथी पर सवार वनरक्षक, कुलांचे मारते हिरण के झुंड एक अद्भुत और नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। अपने संरक्षक बुजुर्ग के पीछे पीछे चलते सड़क पार करते जंगली भैंसो (बायसन) के परिवार के सम्मान में वाहन चालक सुरक्षित दूरी पर गाड़ी रोक देता है, एक गुस्सैल भैंसा बड़ी गाड़ी को पलट सकता है। रास्ता पार करते हुए बायसन के बच्चे रुक कर विस्मित भाव से हमको देखने लगते हैं, तभी पीछे से आती उनकी मां उनको आगे धकियाती है और पूरा झुंड सड़क पार कर घने जंगल मे ओझल हो जाता है। थोड़ा आगे चलने पर हमारा सामना हुआ जंगली सुअरों के एक झुंड से, कहते हैं कि विशाल दांत वाले एक क्रोधित जंगली सुअर (वाराह अवतार) से जंगल का राजा भी दूर ही रहता है। इधर उधर विचरते नील गायों को घास खाते देखना मन को असीम शांति देता है। कहीं दूर से आ रही किसी पक्षी की तीखी आवाज जंगल की शांति भंग करती है। गाईड हमारा ध्यान आकर्षित करता है बगल में अपनी मौज में नाच रहे मयूर की तरफ जो प्रकृति के हरित मंच पर एक भाव विभोर कर देने वाला नृत्य प्रस्तुत कर रहा है। भ्रमण करते हुए आप देख सकते हैं जड़ सहित उखाड़ कर गिरा विशाल पेड़, लुढकती ढलानें, घाटियाँ, विराट घास के मैदान और चारों और फैली चपटे शिखर वाली पहाडियां, जिन्हें स्थानीय तौर पर दादर कहा जाता है। बम्हनी दादर कान्हा का सबसे खुबसूरत और सबसे ऊँचा स्थान है। यहाँ से सूर्यास्त का मनोहारी दर्शन होता है। कान्हा के जंगलों के बीच श्रवण तालाब है जहां राजा दशरथ द्वारा चलाये तीर के लगने से श्रवण कुमार की मृत्यु हुई थी। इसी स्थान के पास दशरथ मचान नामक स्थान भी है जिधर से राजा दशरथ ने तीर चलाया था।
कल कल करती नदी के किनारे रुककर पार्श्व से आ रही पक्षियों की चहचहाट के साथ एकरस होती पानी के प्रवाह की माध्यम ध्वनि आपके कानों को एक अलौकिक संगीत सुनाती है। प्रकृति के अदभुत रंगों से भरी तितलियां इंद्रधनुष देखने का अहसास देती है। जंगल की अपनी एक भाषा होती है, आसमान की ऊंचाई पर मंडराते चील और गिद्ध आपका ध्यान आकर्षित करते है और संकेत देते है कि नजदीक ही घनी घास के बीच कोई शिकार पड़ा है। बंदर या लंगूर की चीख और उनकी बेचैन छटपटाहट किसी बड़े जानवर के आसपास होने का संकेत देती है।
वन संरक्षण और सुरक्षा की दृष्टी से अभयारण्य के कोर क्षेत्र में मानवी गतिविधियाँ पूर्णत: प्रतिबंधित हैं और यहाँ वन्य जीवों को आजाद माहौल में घूमते हुए देखा जा सकता है। जंगल में विचरते समय गाड़ी से नीचे उतरने की अनुमति नहीं होती है, जंगल में पूरे समय गाड़ी में ही बैठे रहना होता है। इस रोमांचक यात्रा का एकमात्र पड़ाव जंगल मे बने एक रेस्तारेंट के समीप होता है जहां रूककर हमने अपनी कमर सीधी की और चाय नाश्ता किया। यहाँ मैदान मे एंटीलॉप (हिरण के सींगों) से निर्मित एक स्वागत द्वार के आकार की अद्भुत कलाकृती स्थापित है। इसे नजदीक से देखना एक अद्भुत अनुभव है।
इसी मैदान मे स्थित है कान्हा संग्राहलय जो वन और वन्यजीव प्रेमियों के लिए स्थलाकृति और पार्क के विभिन्न दिलचस्प पहलुओं से परिचित होने के लिए सबसे उपयुक्त स्थान है। यहाँ आदिवासी संस्कृति की विभिन्न विशेषताओं और गतिविधियों को भी दर्शाया गया है। इसका भ्रमण कान्हा यात्रा को और अधिक रोमांचकारी और शिक्षाप्रद बनता है। संग्रहालय में जीव जंतुओं और पौधों के नमूनों, प्रतिरूपों, तस्वीरों और सुन्दर चित्रों के माध्यम से यहां की भौगोलिक स्थिति, वन संपदा और वन्य जीवों के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाती है। यहां आकर ही पता चलता है कि प्राकृतिक इतिहास को किस तरह से संजोकर रखा जाता है। यह संग्रहालय कान्हा में पाये जाने वाले वन्य जीवों की विविधताओं के वर्णन के साथ-साथ यह भी बताता है कि यहां किस तरह से शाकाहारी और मांसाहारी वन्य जीवों तथा सरीसृपों का संरक्षण किया गया है। पर्यटक वन्य जीवों के रहन-सहन और प्राकृतिक आवास इत्यादि के बारे में ना केवल जान सकते हैं बल्कि उनसे संबंधित पेचीदा खाद्य श्रंखला को भी विस्तार से समझ भी सकते हैं।
कान्हा के इस संरक्षित अभयारण्य की बेहतरी के लिए सरकार द्वारा अनेकों कार्य योजनाए चलाई जा रही है, मुनारे निर्माण, वनरक्षक चौकीयां, वन संरक्षण, शाकाहारी वन्य जीवों के भोजन हेतु वनस्पति रोपण, प्लास्टिक पर प्र्तिबंध, वन्य प्राणीयों को भोज्य पदार्थ खिलाने पर पाबंदी, शिकार पर प्रभावी रोक, अवैध कटाई पर कड़ी बंदीश, अवांछित वानस्पतिक झाड़ियों की लगातार कटाई, वन्य प्राणीयों के लिए प्राकृतिक आवास, सफारी मार्ग का रख रखाव, 917 वर्ग किलोमीटर में फैले कोर प्रक्षेत्र में बसे गांवों का विस्थापन आदि कार्य सम्पन्न कर अपने आप उगते बढ़ते इस जंगल के प्राकृतिक स्वरूप को सँजोकर, सुरक्षित रखा जा रहा है। प्राकृतिक सुंदरता से भरा यह जंगल धरती के वातावरण को स्वच्छ और संतुलित बनाए रखने का काम भी करता है। यहाँ एक बार जाने से आपका मन नहीं भरेगा और आप बार बार कान्हा आना चाहेंगे। राजकुमार जैन writerrajindia@gmail.com
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